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17 August 2025
विष्णुपदी-सिंह संक्रांति क्या है?जब सूर्य देव अपनी गति में एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो उसे संक्रांति कहते हैं।
जब सूर्य कर्क राशि से निकलकर सिंह राशि में प्रवेश करता है (लगभग 17 अगस्त के आसपास), उस संक्रांति को सिंह संक्रांति कहते हैं।
अब, विष्णुपदी संक्रांति का अर्थ है –
जिन संक्रांतियों पर सूर्यदेव विष्णुपदी नक्षत्रों (अर्थात् भगवान विष्णु से सम्बद्ध भाग) में प्रवेश करते हैं, उन्हें विष्णुपदी संक्रांति कहा जाता है।
चार विष्णुपदी संक्रांतियाँ होती हैं –
वृषभ, सिंह, वृश्चिक, और कुंभ संक्रांति।
इसलिए सिंह संक्रांति जब आती है, उसे विष्णुपदी सिंह संक्रांति कहा जाता है।
पुण्यकाल में क्या करना चाहिए?
संक्रांति का पुण्यकाल बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस समय किया गया दान, स्नान, जप-तप, साधारण दिनों से अनंत गुना फलदायी होता है।
विशेष कर्म:
1. स्नान – प्रातःकाल नदी, सरोवर या घर पर गंगाजल से स्नान करना।
2. सूर्योपासना – सूर्य को अर्घ्य देना, आदित्य हृदय स्तोत्र, अथवा “ॐ घृणि सूर्याय नमः” का जप।
3. दान – अन्न, वस्त्र, तिल, घी, गुड़, लड्डू, चावल, सोना या अपनी क्षमता अनुसार दान।
4. जप-तप – भगवान विष्णु और सूर्य का नामस्मरण, विशेषकर “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” और “ॐ नमो नारायणाय”।
5. पितृ तर्पण – संक्रांति के समय पितरों के लिए जल और तिल से तर्पण करने से उन्हें संतुष्टि मिलती है।
6. उपवास / सात्त्विक भोजन – इस दिन ब्रह्मचर्य और सात्त्विकता का पालन करना।
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